आज मनाया जाएगा पक्खी पर्व जिसमे नौ दिनी नवकार महामंत्र के जाप भी होंगे

साध्वी धैर्यप्रभाजी, निखिलशीलाजी आदिठाणा के सान्निध्य में 28 सिंतबर को पक्खी पर्व मनाया जाएगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं सामूहिक उपवास तप की तपस्या करेंगी और कई आराधक बेला, आयंबिल, नीवीं, एकासन, बियासन आदि भी विविध तपाराधना करेेंगे। इस अवसर पर पौषध, दसवां पौषध और संवर की आराधना भी होगी। दोपहर को नवकार महामंत्र के जाप पौषध भवन स्थानक पर होंगे। शाम को 6.20 बजे से पक्खी प्रतिक्रमण शुरू होगा। श्रावक वर्ग का प्रतिक्रमण दौलत भवन पर और श्राविका वर्ग का प्रतिक्रमण पौषध भवन पर होगा।

प्रतिक्रमण में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं भाग लेंगे। साध्वी मंडल के सान्निध्य में 25 सितंबर से दस प्रत्याख्यान की तपाराधना प्रारंभ हुई। तपाराधना का समापन 5 अक्टूबर को होगा। यहां सिद्धभक्ति तप की आराधना भी पूर्ण हो चुकी है। नौ दिवसीय नवलाख नवकार महामंत्र के जाप 29 सितंबर से प्रारंभ होंगे। इस आराधना में 100 से अधिक आराधक भाग लेंगे। यहां पर मासक्षमण एक, धर्मचक्र दो, चार-चार के पारणे एक, 11 उपवास 2, आठ उपवास 18, मेरु-तप 5 आदि विविध तपाराधना पूर्ण हो चुकी है। सात श्रावक-श्राविकाएं वर्षीतप की आराधना कर रहे हैं। प्रतिदिन प्रातः 7 से 7.30 बजे तक पौषध भवन स्थानक पर प्रार्थना का आयोजन हो रहा है।

रविवार को होंगे सभी सामूहिक पारणे

ललित जैन नवयुवक मंडल के अध्यक्ष ललित भंसाली और सचिव चिराग घोड़ावत ने बताया पक्खी पर्व के प्रसंग पर होने वाले सामूहिक उपवास आदि समस्त तपाराधना करने वाले तपस्वियों के सामूहिक पारणे रविवार को स्थानीय महावीर भवन पर होंगे। पारणे करवाने का लाभ वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ने लिया है। पारणे के पूर्व पौषध भवन स्थानक पर नवकार महामंत्र के सामूहिक जाप व प्रार्थना होगी।

बचपन निर्दोष, हंसमुख और कौतूहल वाला होता है : प्रन्यास प्रवर जिनेंद्रविजयजी

बचपन में बहुमान करने के पांच कारण होते हैं। बचपन निर्दोष होता है, चिंता रहित होता है, हंसमुख होता है, कौतूहल वाला होता है और सबको प्यारा होता है। यह बात प्रन्यास प्रवर जिनेंद्रमुनिजी ने कही। वे श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के पौषध शाला भवन में शुक्रवार सुबह धर्मसभा में प्रवचन दे रहे थे। प्रन्यास प्रवर ने आज दो महापुरुषों अर्निका पुत्र एवं अतिमुक्तक के जीवन का वर्णन किया। अति मुक्तक ने अपने जीवन के अंदर गौतम स्वामीजी के साथ गौचरी जाते समय मन में यह प्रण लिया कि मैं दीक्षा लूंगा। मां से संवाद किया और छोटे से बालक ने मां से कहा ‘मैं जो जानता हूं, वह नहीं जानता और जो नहीं जानता हूं, वह जानता हूं अर्थात मैं जानता हूं कि मुझे मृत्यु आएगी। परंतु मर कर कहां जाऊंगा, यह नहीं पता। अष्ट प्रभावक नरेंद्र सूरीजी ने शुक्रवार को गुलाब विजयजी की मांगलिक सुनाकर उनका जीवन वृत्तांत बताया।