कमलनाथ ने राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर दी श्रद्धांजलि

भोपाल। मध्य प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय के राजीव गांधी सभागार में रविवार को महाराज शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और मप्र कांग्रेस के प्रभारी जे.पी. अग्रवाल ने दोनों वीर बलिदानियों के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर श्रद्धासुमन अर्पित किये, उनके जीवन पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर उपस्थित कांग्रेसजनों ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किये।

इस अवसर पर कमलनाथ ने कहा कि मप्र के इन दोनों महान बलिदानियों, जिनको अंग्रेजी हुकूमत ने तोप से बांधकर उड़ा दिया था, देश का प्रत्येक आदिवासी वर्ग इन पर गर्व करता है। बलिदान देने वाले ये दो व्यक्ति नहीं बल्कि सगे पिता-पुत्र थे, जिन्होंने 1857 की क्रांति में हिस्सा लेकर आदिवासी वर्ग को ही नहीं, सभी समाज को जागृत कर, आंदोलन में शामिल होने की चेतना पैदा की थी। हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहूती दी, उन्होंने भारत को किन ऊचाईयों पर पहुँचाने का स्वप्न देखा था। जिस तरह अंग्रेजों ने फूट डालो शासन करो की नीति अपनायी थी, आज देश में बैठी फासिस्टवादी ताकते भी उसी तरह का काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आज देश को नया मोड दिया जा रहा, भारत को कहां घसीटा जा रहा है। जो आदिवासी समाज एक होकर हमेशा रहा है, उसको पैसा और प्रलोभन देकर बांटने का प्रयास किया जा रहा है। देश के भविष्य को सुरक्षित कैसे किया जाए, आप कैसा देश देखना चाहते हैं, बंटा हुआ, विवाद भरा अथवा एकजुटता वाला देश, यह हमारे सामने आज बहुत बड़ी चुनौती है।

वहीं इस अवसर पर मप्र के प्रभारी जे.पी. अग्रवाल ने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ ने आदिवासी वर्ग के उत्थान और उनके हितों के लिए निरंतर संघर्ष किया। जब इतिहास लिखा गया तो इन दो महान बलिदानी पिता-पुत्र का नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जिन्होंने देश के लिए अपनी कुर्बानी दी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिन्होंने पीठ पर गोली खाई हो, सभी ने सीने पर गोली खाई है और देश की रक्षा और सम्मान की ख़ातिर किसी ने कभी सर नहीं झुकाया।            

प्रदेश कांग्रेस अनुसूचित जनजाति विभाग के पूर्व अध्यक्ष अजय शाह ने शंकर शाह और रघुनाथ शाह की शहादत पर कहा कि उन्होंने आदिवासी वर्ग के लिए जो चेतना और अलख 1857 की क्रांति में शामिल होकर देश की रक्षा हेतु लोगों में जागृत की थी, उसका आज इतिहास गवाह है।