लोगों की बढ़ती नाराजगी और गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए हैं और जीएसटी की दरों में बदलाव करते हुए तमाम वस्तुओं को 28 फीसदी के दायरे से बाहर कर दिया है. सरकार के इस फैसले व्यापारी समुदाय संभवत: खुश होगा, लेकिन सवाल यह है कि जब गुजरात में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, ऐसे में लोगों को रिझाने वाले फैसले करना क्या आदर्श आचार संहिता उल्लंघन नहीं है?
इसी सवाल को उठाते हुए शुक्रवार की जीएसटी काउंसिल की बैठक ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में अर्जी दायर की गई है. अर्जी में कहा गया कि चूकि गुजरात में चुनाव प्रक्रिया जारी है, ऐसे में जीएसटी की बैठक नहीं होनी चाहिए. कहा गया है कि बैठक का कोई भी फैसला आचार संहिता का उल्लंघन है, क्योंकि यह फैसला मतदाताओं को प्रभावित करता है.
मामलें की सुनवाई अगले हफ्ते होगी. याचिका अहमदाबाद के रहने वाले संदीप कुमार किशन कुमार शर्मा की तरफ से दायर की गई है और इसमें जीएसटी चेयरमैन, गुजरात राज्य चुनाव आयोग और वित्त मंत्रालय के सचिव को पक्षकार बनाया गया है.
फ़्रिज-वॉशिंग मशीन जैसे उत्पादों पर अब भी 28 फीसदी की दर से ही जीएसटी लगेगा. साथ ही घर बनाने के लिए जरूरी सीमेंट और सजाने के लिए जरूरी पेंट पर भी 28 फीसदी टैक्स लगेगा. इससे महिलाओँ और अपने घर की उम्मीद लगाए लोगों में नाराजगी बरकरार है.
शुक्रवार की बैठक के बाद जीएसटी काउंसिल ने होटल-रेस्टोरेंट क्षेत्र की दरों में बड़े बदलाव किए हैं और कंपोजिशन स्कीम का दायरा बढ़ा दिया है. मतलब कंज्यूमर और कारोबारी दोनों को राहत देने वाले फैसले किए गए हैं. यहां तक कि कंपोजिशन में बदलाव के लिए सरकार जीएसटी एक्ट में भी बदलाव करेगी. जीएसटी लागू होने के चार महीने बाद इतने बड़े बदलावों के कई मायने निकाले जा सकते हैं. मसलन, क्या सरकार ने जल्दबाजी में बारीकियों की अनदेखी की, जो अब समझ में आ रही हैं?
चार महीनों में जीएसटी में कई तरह के फेरबदल किए गए जाने के बाद सवाल यह उठता है कि क्या मोदी सरकार गुजरात चुनाव को देखते हुए जीएसटी में बड़े बदलाव कर रही है? या असल में दिक्कतों को देखते हुए इन बड़े फेरबदल की जरूरत थी? साथ ही दरों में कटौती से राजस्व नुकसान की भरपाई कैसे होगी? और क्या सरकार जीएसटीएन इंफ्रास्ट्रक्टर के सबसे बड़े चैलेंज को दूर कर पाएगी?