गुजरात में गांवों में BJP नेताओं के घुसने पर प्रतिबंध, पाटीदारों ने किया BJP का बहिष्कार

गुजरात में पाटीदार अनामत आंदोलन में पाटीदारों के साथ बीजेपी सरकार में हुई ज्यादतियों को समाज भूल नही पा रहा है. बीजेपी में बड़ी संख्या में पाटीदार नेताओं के होने के बाद भी ग्रामीण स्तर पर तंगहाली में जी रहा पाटीदार पीएम मोदी के बहकावे में आकर बीजेपी को वोट देने को कतई तैयार नहीं है.

पाटीदार आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलियों और लाठियों के शिकार हुए पाटीदार युवाओं के परिजन अपने गांवों में बीजेपी के किसी नेता को घुसने नहीं देना चाहते. इसलिए गुजरात के पाटीदार बाहुल्य कई गांवों में स्थानीय लोगों और ग्रामीणों ने बीजेपी के लोगों को गांव के अंदर प्रवेश करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. गुजरात निवासी और गुजरात के 3 बार मुख्यमंत्री रहे प्रधानमंत्री के लिए यह एक असहज स्थिति है. पिछले चुनावों में जो पटेल समुदाय भाजपा का प्रबल समर्थक रहा, आज उसने ही इस बार ‘भाजपा हराओ’ का नारा बुलंद किया है.
bjp is restricted to enter gujarat's  village by patidar
गुजरात में पटेलों में दो उप-समुदाय हैं. इनमें एक लेउवा पटेल और दूसरा कड़वा पटेल. हार्दिक पटेल, कड़वा पटेल समुदाय से हैं. पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल लेउवा समुदाय से आते हैं, जिनकी राजनीति खत्म करने का आरोप नरेन्द्र मोदी पर लगता रहा है. पाटीदार समुदाय में लेउवा का हिस्सा 60 फीसदी और कड़वा का हिस्सा 40 फीसदी है. कांग्रेस को कड़वा के मुकाबले लेउवा से ज्यादा समर्थन मिलता रहा है. पाटीदार समुदाय संगठित होकर मतदान करता है. पिछले चुनाव 2012 के आंकड़े को देखें तो लेउवा पटेल के 63 फीसदी और कड़वा पटेल के 82 फीसदी वोट बीजेपी को मिले थे.

हार्दिक पटेल की मांग पटेल-पाटीदार समुदाय को ओबीसी की लिस्ट में शामिल कराने की है. ताकि शिक्षा और नौकरी में उन्हें आरक्षण मिल सके. इसके लिए हार्दिक ने कांग्रेस को अल्टीमेटम देते हुए पूछा है कि कांग्रेस बताए कि सत्ता में आने के बाद पाटीदारों के संवैधानिक आरक्षण के लिए वो क्या करेगी? यह मांग कांग्रेस के लिए भी एक चुनौती है क्योंकि हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पिछड़े वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर लगातार पाटीदारों को OBC कोटे में से आरक्षण देने के विरोध में रहे हैं और यही उनकी राजनीति का मुख्य आधार रहा है.