वंशवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर बीजेपी का राजनीती करना और कोसना उनकी नफरत भरी राजनीती को दर्शाता हैं. बीजेपी को यह नहीं भूलना चाहिए कि’ उनकी पार्टी में भी ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं हैं जो कि वंशवाद को बड़ा रहे हैं. और जिनका परिवार राजनीति से जुड़ा है.
बीजेपी जब से भारतीय राजनीती ने आई हैं तभी से ही वह कांग्रेस में वंशवाद का आरोप मढ रही हैं. और इस बात को लेकर खूब हो हल्ला कर रही है कि कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं है. लेकिन बीजेपी अगर अपने गिरेबान में झांक कर देखे तो पता चलेगा कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्षों का चुनाव बिना किसी वोटिंग के ही होता रहा है.
बीजेपी को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव देश के चुनाव आयोग की देखरेख में हो रहा है. और, इसके बाद किसी पारदर्शिता और विश्वसनीयता की बात करने वाले मुंह ताकते रह जाएंगे. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का मामला है, जिनके चुनाव आयोग के साथ उलझे रिश्ते जगजाहिर हैं.जुलाई 2014 में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से कुछ महीने पहले ही अमित शाह को चुनाव आयोग ने इस बात पर फटकार लगाई थी और एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के कारण उनकी रैलियों पर रोक लगा दी थी.
जहां तक वंशवाद की बात है बीजेपी में भी वंशवाद की फेहरिस्त बहुत लंबी है. केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विधायक हैं, स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र में मंत्री हैं, यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा केंद्र में मंत्री हैं, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद हैं.
इसके अलावा भी बीजेपी नेताओं के कई बेटा-बेटी इसी परंपरा के तहत पार्टी या सरकार में शामिल हैं. वैसे भी ध्यान से देखें तो भारतीय राजनीति में वंशवाद हमेशा से कायम रहा है. फिर चाहे वह द्रविण मुनेत्र कडगम (डीएमके) हो या फिर महाराष्ट्र की शिवसेना सभी पार्टियाँ एक राजनीतिक परिवार की देखरेख में बड़ी बनी हैं. जिसमे से बीजेपी भी एक ही हैं.