विकास के पिटारे और किसान कर्ज़माफ़ी ने दिला दी कांतिलाल भूरिया को जीत

झाबुआ विधानसभा सीट कांग्रेस की झोली में आ गयी. इलाके के पुराने और खाटी कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया इस बार संसद के बजाए विधान सभा में इलाके का प्रतिनिधित्व करेंगे. झाबुआ उप चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था. बीजेपी अपना कब्जा बनाए रखने के लिए प्रयास में थी और कांग्रेस की कोशिश अपने पुराने परंपरागत गढ़ में लौटने की थी. कांग्रेस की जीत में  किसान कर्ज़माफ़ी और जेवियर मेड़ा का सहयोग मददगार साबित हुआ. सीएम कमलनाथ ने विकास के नाम पर वोट मांगे थे. वादा किया था कि विकास का छिंदवाड़ा मॉडल वो झाबुआ में भी लाएंगे.
झाबुआ सीट बीजेपी विधायक गुमानसिंह डामोर के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी. डामोर के लोकसभा में जाने के बाद इस सीट पर उप चुनाव होना तय था. बस कांग्रेस ने तभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी थी. 2019 का लोकसभा चुनाव इस क्षेत्र से हार चुके कांतिलाल और उनके बेटे विक्रांत भूरिया ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी थी.


सीएम का फोकस

उपचुनाव को देखते हुए कमलनाथ सरकार का फोकस झाबुआ पर रहा. खुद सीएम कमलनाथ चुनाव के दौरान दो बार प्रचार के लिए यहां आए और रोड शो किया. उससे पहले वो झाबुआ में दो बड़े कार्यक्रम कर चुके थे.24 जून  को स्कूल चले अभियान  की शुरूआत झाबुआ से की गई. इसी दिन किसानों को कर्ज़माफी के प्रमाण पत्र बांटे गए थे. 11 सितंबर को सीएम कमलनाथ एक बार फिर झाबुआ पहुंचे थे और झाबुआ मुख्यमंत्री आवास मिशन की शुरूआत की गई.


मंत्रियों का डेरा


उपचुनाव की तारीख़ के एलान से पहले ही सरकार के दर्जन भर से ज्यादा मंत्रियों ने झाबुआ का दौरा किया और झाबुआ के रुके कामों को गति देने की कोशिश की.

आदिवासियों के लिए खोला पिटारा


कमलनाथ सरकार ने इस दौरान झाबुआ के आदिवासियों के लिए पिटारा खोल दिया. आदिवासी कल्याण विभाग  के तहत समूहों को 25 हजार रूपए के बर्तन देने की घोषणा की. मंत्री ओमकार मरकाम ने योजना की शुरुआत यहां से की और झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के 218 समूहों  को बर्तन बांटे. साथ ही उत्सव के लिए 50 किलो अनाज भी देने की घोषणा सरकार की ओर से की गई.


हार से सबक


2013 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस इस सीट से हार चुकी थी. अपनी हार से सबक लेते हुए उसने अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास किया. कांग्रेस के लिए राहत की बात ये रही कि वो टिकट ना मिलने से नाराज़ चल रहे जेवियर मेड़ा को मनाने में कामयाब रही. कांग्रेस यहां 2003 से अब तक 3 विधानसभा चुनाव हार चुकी है. तीनों बार हार की वजह पार्टी की अंदरूनी कलह रही. जेवियर के साथ आने से कांग्रेस को फायदा मिला. लाभ में जेवियर समर्थक भी रहे जिन्हें पार्टी संगठन में बड़ी पदों से नवाज़ा गया.


40 साल का सफर

कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया 40 साल से राजनीति में सक्रिय हैं. वो इस इलाके में ख़ासे लोकप्रिय हैं. व्यक्तिगत रूप से लोगों को पहचानते हैं. उनकी ख़ासियत ये भी है कि वो सभी वर्ग और धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलते हैं.


काम नहीं आया प्रपोगंडा


बीजेपी का किसान कर्ज़ माफी को लेकर किया गया प्रचार यहां काम नहीं आया.  किसान कर्ज़़ माफी को लेकर भले ही बीजेपी भले ही माहौल बनाती रही कि प्रदेश में किसानों  का कर्ज़ माफ नहीं हुआ. लेकिन उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए  झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के 56 हजार किसानों का कर्ज़ माफ किया गया. उनके खाते में रुपए भी जमा किए गए. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला. हालांकि  23 हजार किसानों को तकनीकी खामियों और दस्तावेज़ों की कमी के कारण अभी कर्ज़माफी का लाभ नहीं मिल पाया है.

मान गए मेडा-सीएम कमलनाथ की रणनीति काम कर गई. पिछले विधानसभा चुनाव में बागी हो चुके जेवियर मेडा को इस बार सीएम कमलनाथ ने मना लिया. यही कांग्रेस जीत का बड़ा कारण बना.2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 65000 वोट मिले थे और कांग्रेस के खाते में
55000 वोट पड़े थे. निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जेवियर मेडा को 35000 वोट मिले थे. अगर ये वोट कांग्रेस को मिल जाते तो कांग्रेस पिछली बार ही जीत जाती. मेडा के साथ आने के बाद इस बार कांग्रेस को 90 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले.