नोटबंदी का असर “समाज के कमजोर तबकों और कारोबार इतना अधिक है कि कोई भी आर्थिक मापदंड इसे नाप ही नहीं सकता.” यह कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोगन सिंह का. नोटबंदी का एक साल पूरा होने के मौके पर ब्लूबर्ग क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में मनमोहन सिंह ने नोटबंदी से छोटे और मझोले कारोबार और काम-धंधों में रोजगार खत्म होने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि इससे असमानता का भाव भी बढ़ा है.
“…लगातार बढ़ती असमानता और बराबरी का मौका न मिलना हमारे आर्थिक विकास के तौर-तरीकों के लिए बड़ा खतरा रहा है. नोटबंदी से यह चुनौती और बड़ी हो गई है, जिसे निकट भविष्य में दुरुस्त बेहद मुश्किल होगा.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रहे मनमोहन सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारा ध्यान भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने पर होना चाहिए. इस सवाल पर कि क्या नोटबंदी और जीएसटी के बाद क्या अनौपचारिक क्षेत्र का करीब 40 फीसदी हिस्सा औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बना है, मनमोहन सिंह ने कहा, “तरीके उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि उन पर अमल के बाद लक्ष्यपूर्ति” और लक्ष्य “धमकियों और छापेमारी से पूरे नहीं किए जाते, क्योंकि इनका उलटा असर भी हो सकता है.”
“…अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा सृजित लाभ की असली तस्वीर तभी पता चलेगी जब उससे हुई आमदनी, संपत्ति सृजन और उसके इस्तेमाल का फायदा सामने आएगा. इसलिए हमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को लेकर आम धारणा बनाने और नैतिक फैसले सुनाने से पहले एहतियात बरतनी होगी.”
उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने एक शांतिप्रिय और स्थिरता वाले भारत की साख को भी काफी नुकसान पहुंचाया है. मनमोहन सिंह की नजर में देश पर यह झटका खुद पर किया गया वह हमला था जो एक विचारहीन नीति को बिना सोचे समझे लागू करने का नतीजा था.
उन्होंने कहा कि “नोटबंदी के मुद्दे पर राजनीति बहुत हो चुकी, अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़प्पन दिखाते हुए इसे एक बड़ी गलती के तौर पर स्वीकार करें और सभी लोगों को साथ लेकर अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करें.”