मोदी को अटल के समकक्ष रखना मोदी के सम्मान का और अटल के अपमान का है दुस्साहस

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु जहाँ देश और दुनिया के लिए शोक और संवेदना का विषय है वहीं ये मोदी के लिए इमेज ब्रांडिंग और कुछ मीडिया चैनलों के लिए टीआरपी का विषय बन कर रह गया है। हम इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे कि भाजपा ने अटल से मोदी तक का सफ़र तय करने में क्या-क्या खोया है, हम इस मुद्दे पर भी बात नहीं कर रहे की जिसकी शारीरिक मृत्यु तथाकथित 16 अगस्त 2018 को हुई उसकी राजनैतिक मृत्यु कब और किनके द्वारा की गयी, हम ये भी बात नहीं कर रहे की जिस दौर के एक नेता के गुजर जाने पर मोदी और शाह सहानुभूति और संवेदना का अभिनय कर रहे हैं उसी दौर के जीवित नेताओं की साथ मोदी-शाह और भाजपा किस तरह का आचरण कर रही है, हम इस बात पर भी गौर नहीं करना चाहते की अटल बिहारी वाजपेयी की बहन और राजनीती में उनके इकलौते भांजे अनूप मिश्रा के साथ मोदी और भाजपा ने क्या-क्या किया है।

जिस देश में गरीब और बेसहारा अपने परिजनों की लाश लेकर रोज मीलों पैदल चल रहा हो उस देश में मोदी और शाह का 2 किलोमीटर पैदल चलना चर्चा का विषय बन गया, यहाँ नीलामी मीडिया और मोदी दोनों के चरित्र की हो रही है, और जनता से कहा जा रहा है ताली बजाओ…वैसे किस बात की ताली..? अटल जी के जाने की या भाजपा के संवेदना कार्ड भुनाने की..? जो कल मरा है वो परसों तक जीवित था, इन कितने ढोंगियों की फेसबुक वाल पर, कितने ढोंगियों के पोस्टर पर या कितने ढोंगियों के कार्यक्रमों में आपने परसों तक अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर देखी है..?

चलो कुछ पल के लिए भाजपा के इस अटल मृत्यु इवेंट को बर्दाश्त कर भी लिया जाय पर क्या अब अटल की मोदी से तुलना भी बर्दाश्त करनी पड़ेगी..? क्या राजधर्म का सन्देश अब अधर्म के सन्देश से तौला जायेगा..? क्या अटल जी के जाने के बाद अमित शाह को अटल जी का बेटा बताकर अटल को श्रधांजलि की जगह राजनैतिक गाली दी जायेगी..? अटल और मोदी दो विपरीत विचारधारा के ध्रुव हैं, अटल जहाँ राजधर्म और समभाव की बात करते थे वहीं मोदी अधर्म और दुर्भाव के लिए जाने जाते हैं। अमित शाह का तो इस लेख में उल्लेख भी अटल जी का अनादर है पर क्या करे जब कमल की बात होती है तो कीचड का जिक्र अनायास ही हो जाता है। अटल जी ने देश को जो कुछ भी दिया उसे धोने और मिटाने वाले नेताओं ने अटल जी को मृत्यु का एक सही समय तक नसीब नहीं होने दिया।

मै अटल जी की मृत्यु के समय पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूँगा क्योंकि जिस व्यक्ति के जिन्दा रहने का अहसाह इस सरकार को नहीं था, वो भला उनके मरने के वक़्त, घड़ी, गृह-गोचर और नक्षत्र की कीमत क्या जाने। अब तो डर बस यही है कि कहीं मध्यप्रदेश के गाँव-गाँव में अस्थि कलश यात्रा निकालने का ढोंग करने वाले तथाकथित शोकाकुल अभिनयाचार्य अस्थिपात्र में ही भाजपा को वोट दो भी ना लिखवा दें, या अस्थि कलश में कमल के फूल का निशान न छपवा दें, या फिर सेल्फी विथ अस्थि जैसा कोई और आयोजन ना कर बैठें। भाजपा की हालत और देश के हालात पर शर्म तो बहुत आती है पर सुना है बेशर्मों के बीच शर्माना भी नपुंसकता और कायरता है।
आओ हम एक आजाद भारत के परिस्थतिजन्य गुलाम की हैसियत से अटल बिहारी वाजपेयी से क्षमा मांगे और उनकी आत्मा को ये विश्वास दिलाएं की हम आपके साथ धोखा करने वाले आत्माहीन शरीरों का साथ देकर अपने जमीर और अपनी आत्मा की हत्या नहीं करेंगे।