झाबुआ उपचुनाव में ये मुद्दे और समीकरण तय करेंगे, किसके सर सजेगा ‘झाबुआ’ का ताज

झाबुआ में सियासी रण अब अपने पूरे शबाब पर है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत उपचुनाव को जीतने के लिए लगा दी है. एक तरफ सीएम कमलनाथ समेत कांग्रेस के 12 मंत्री झाबुआ में डेरा डाले हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की ओर से पूर्व सीएम शिवराज सिंह, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने झाबुआ में बिसात बिछाई हुई है. आखिर क्या कहती है झाबुआ की जनता और किसका पलड़ा हो सकता है भारी?

कांग्रेस-बीजेपी ने झोंकी ताकत
भूरिया बनाम भूरिया की लड़ाई में दिलचस्प हो चले झाबुआ उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. दोनों ही पार्टियां दावा कर रही हैं कि उपचुनाव में जीत उनकी होगी हालांकि जनता अभी भी खामोश है. लिहाजा सियासत की नब्ज झाबुआ में टटोल पाना आसान नहीं है. झाबुआ उपचुनाव का फैसला यहां के 2 लाख 77 हजार मतदाताओं को करना है, जो 21 अक्टूबर को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे, जिसके नतीजे 24 अक्टूबर को आएंगे. झाबुआ के चुनावों में जातिगत समीकरण काफी मायने रखते हैं और इन्हीं से हार जीत का समीकरण तय होता है. ऐसे में झाबुआ में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार भूरिया होने से सियासी समीकरण जटिल हो चले हैं. झाबुआ की 85 प्रतिशत आबादी आदिवासी है, लेकिन आदिवासी वोटर्स में भी अलग-अलग वर्ग हैं और उनकी भी उपजातियां हैं.

झाबुआ का जातिगत समीकरण
>> झाबुआ में कुल मतदाता 2 लाख 77 हजार है

>> 1 लाख 39 हजार पुरुष मतदाता हैं

>> 1 लाख 38 हजार महिला मतदाता हैं

>> 85 फीसदी आदिवासी मतदाताओं में भील, पटलिया और भिलाला मतदाता हैं. भील मतदाताओं के मुकाबले पटलिया और भिलाला समाज की संख्या कम है. भिलाला मतदाता ज्यादातर आलीराजपुर जिले में आने वाली 17 पंचायतों से आते हैं.

जातिगत आंकड़ों के नजरिए से देखें तो
>> भील मतदाता करीब 1 लाख 30 हजार
>> 60-65 हजार पटलिया और
>> करीब 20-22 हजार भिलाला मतदाता हैं

भील मतदाताओं में जातिवार देखें तो
>> भूरिया जाति के 50 हजार से ज्यादा मतदाता
>> डामोर जाति से 30 हजार मतदाता बाकि अन्य भील जातियां शामिल हैं
>> इन्ही में 25.30 हजार ईसाई मतदाता हैं जो कांग्रेस का वोटबैंक माने जाते हैं और ईसाई नेताओं की उपेक्षा के चलते नाराज भी हैं.
>> सामान्य, मुस्लिम, ओबासी और अन्य मतदाताओं की संख्या करीब 50 हजार है
भील और भिलाला कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक है लेकिन पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने इसमें सेंधमारी की है. दूसरी ओर पटलिया समाज का झुकाव बीजेपी की ओर ज्यादा रहता है.

बीजेपी, कांग्रेस और जनता के मुद्दे
झाबुआ उपचुनाव में जहां बीजेपी-कांग्रेस के अपने-अपने मुद्दे हैं, वहीं इस सियासी फाइट से जनता के मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं. ये मुख्यत: दो पुराने पारंपरिक विरोधियों की लड़ाई है और खास बात ये है कि फैसला इन्ही दोनों में होना.

बीजेपी के मुद्दे –

-बीजेपी ने भूरिया परिवार के परिवारवाद को मुद्दा बनाया है. बीते कई चुनावों से कांग्रेस लगातार भूरिया परिवार को ही टिकट दे रही है.
-बीजेपी ने सरकार की 9 महीने की खामियों को भी मुद्दा बनाया है.
-बारिश से बर्बाद हुई फसलों और कर्जमाफी को भी बीजेपी मुद्दा बना रही है

कांग्रेस के मुद्दे

-किसानों की कर्जमाफी को सरकार की उपलब्धि के तौर पर गिना रही है कांग्रेस
-भूरिया को संभावित मंत्री पद के दावेदार के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है

जनता के मुद्दे नदारद ?
झाबुआ के 60 फीसदी लोग मजदूरी के लिए अब भी गुजरात और राजस्थान जाने मजबूर हैं
राणापुर क्षेत्र में जहां से दोनों भूरिया उम्मीदवार आते हैं वहां पानी की समस्या है. गर्मियों के दिनों में लोग गड्ढे खोदकर पानी निकालने को मजबूर होते हैं. रोजगार के लिए झाबुआ में कोई औद्योगिक क्षेत्र नहीं है. स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं, बेहतर इलाज के लिए लोगों को आज भी गुजरात के बड़े शहरों में जाना पड़ता है. शिक्षा और रोजगार युवाओं के बीच बड़े मुद्दा हैं.

किसके सिर सजेगा ताज ?
झाबुआ उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी भानु भूरिया कांग्रेस उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के सामने हैं. भानू भूरिया भील समुदाय से आते हैं और कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले राणापुर क्षेत्र के रहने वाले हैं. भानु भूरिया के पिता बालू भूरिया भी अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता रहे हैं और दिवंगत बीजेपी नेता दिलीप सिंह भूरिया के कट्टर समर्थक हैं. यही वजह की दोनों भूरिया परिवारों में सियासी अदावत पुरानी है. अब देखना ये है कि आखिर उपचुनाव की इस दिलचस्प लड़ाई में बाजी कौन मारता है.