झाबुआ उपचुनाव में कांग्रेस की एकतरफा लहर, बीजेपी अंदरूनी कलह और बागियों के भंवर में फंसी

कुछ दिन पहले तक कांग्रेस को जबरदस्त टक्कर देने का दम भरने वाली भाजपा झाबुआ के चुनाव मैदान से लुप्त होती नजर आ रही है। झाबुआ उपचुनाव की घोषणा तक बीजेपी जहाँ एकजुट, सक्रिय और पैनी नजर आ रही थी वहीं भानू भूरिया को बीजेपी प्रत्याशी बनाने की घोषणा होते ही कई हिस्सों में बटी नजर आने लगी है। जहाँ बीजेपी के जिला अध्यक्ष कल्याण सिंह डामोर अपने जिला अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं वहीं बीजेपी से टिकेट के अन्य दावेदार खुलकर बीजेपी प्रत्याशी के विरोध में प्रचार करते नजर आ रहे हैं।

बीजेपी के बागी कल्याण सिंह डामोर को बीजेपी संगठन के कई लोगों के साथ-साथ इसी सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके एक पूर्व बीजेपी विधायक का भी जमकर साथ और समर्थन मिल रहा है, ऐसे में डामोर ने खुद के लिये जीत बेशक नहीं पर बीजेपी के लिए हार सुनिश्चित करने का काम तो कर ही दिया है।

बीजेपी के शीर्ष नेताओं की गुटबाजी और आपसी कलह भी इस चुनाव में कांग्रेस की अच्छी खासी मदद कर रही है। जहाँ एक ओर शिवराज सिंह चौहान इंदौर के छत्रपों को लांघते हुए सीधे झाबुआ में पैर पसारने की जुगत में लगे हुए हैं वहीं बीजेपी की झाबुआ इकाई और इन्दोरी गुट इसे कतई बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।

बीजेपी के एक बयानवीर नेता जी तो पहले ही दिन झाबुआ आकर सेल्फ-गोल कर बैठे और अपने ऊपर एफआईआर का दाग लेकर चले गए, वहीं दूसरे एक नेताजी ईओडब्लू के फेरे से निकलने में इतने मशगूल हैं की उन्हें ये भी नहीं पता की झाबुआ में चुनाव जैसा भी कुछ है।

अब यदि कांग्रेस की बात करें तो जहाँ जेविअर मेडा कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया के पक्ष में सघन चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं वहीं कांग्रेस से नाराज होकर नामांकन दाखिल करने वाले जोसेफ माल ने भी अपना नामांकन वापस लेकर कांग्रेस प्रत्याशी के साथ चुनाव प्रचार करना प्रारंभ कर दिया है।

कुल मिलाकर अब झाबुआ उप चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी के बीच जीत-हार की लड़ाई बिलकुल भी नजर नहीं आ रही है, बल्कि कांग्रेस अधिकतम मतों से जीतने का रिकॉर्ड बनाने के लिए मेहनत कर रही है वहीं बीजेपी पराजय के अंतर को न्यूनतम करने के प्रयास में जुटी हुयी है।