मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में नौकरी गायब: क्या अहंकार में डूबी मोदी सरकार इन आंकड़ों को देखेगी?

रोजगार के मौके कम हो रहे हैं, नौकरियां जा रही हैं, नई नौकरियां निकल नहीं रहीं, और कंपनियां लोगों को नौकरी नहीं दे रहीं. यह तस्वीर है उस देश की जिसके प्रधानमंत्री ने सत्ता संभालने से पहले वादा किया था कि हर साल एक करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा. रोजगार मिलता कैसे? पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी, इन दो टारपीडो ने देश की अर्थव्यवस्था को आईसीयू में पहुंचा दिया और रोजगार मुहैया कराने वाले छोटे और मझोले उद्योग धंधे और कारोबार बंद हो गए.

बात यहीं नहीं रुकती. यह कहानी तो असंगठित क्षेत्र की है. लेकिन संगठित क्षेत्र में भी नौकरियां कम हो रही हैं. और तो और देश की नवरत्न और महारत्न सरकारी कंपनियों ने भी नौकरियां देने का काम बंद कर दिया है और अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या और भर्ती में बीते सालों में 33 फीसदी तक की कटौती कर दी है.
पहले ही बेरोजगारी और रोजगार के कम अवसरों को लेकर आलोचना झेल रही मोदी सरकार की इन नए आंकड़ों से मुसीबतों बढ़ सकती हैं.

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ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ के महासचिव ब्रजेश उपाध्‍याय ने एक न्यूज पोर्टल से बातचीत में कहा कि पीएफ सदस्यों की संख्या में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन ये चिंता का विषय है. वहीं, इंटीग्रेटेड एसोएिसएशंस ऑफ माइक्रो स्‍मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेस यानी आईएमएसएमई ऑफ इंडिया के चेयरमैन राजीव चावला ने एक वेबसाइट को बताया कि संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्‍या में 10 से 35 फीसदी तक गिरावट गंभीर मसला है. भले ही इसके पीछे कोई भी कारण है. उनका कहना है कि इसके पीछे नोटबंदी और जीएसटी भी एक अहम कारण हो सकता है.

चैनल की पड़ताल में बताया गया है कि बीते तीन सालों यानी 2014 से 2017 के बीच देश की नवरत्न और महारत्न कही जाने वाली सरकारी कंपनियों ने इसके पिछले तीन साल के मुकाबले 42053 कम लोगों को नौकरियों पर रखा है. यह संख्या करीब 6 फीसदी है. चैनल ने इन सरकारी कंपनियों में से कुछ से बात की और सभी कंपनियों ने कम लोगों को नौकरी पर रखने के अलग-अलग कारण दिए हैं.

अलावा ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया और भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन जैसी कंपनियों ने भी कुछ ऐसे ही तर्क दिए हैं. चैनल की पड़ताल से सामने आया है कि बीते कुछ सालों में एमटीएनल ने 33 फीसदी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने 22 फीसदी, कोल इंडिया ने 17 फीसदी और शिपिंग कार्पोरेशन ने 23 फीसदी कम लोगों को नौकरी पर रखा है.
क्या अहंकार में डूबी मोदी सरकार इन आंकड़ों को देखेगी? या फिर सिर्फ नकली आंकड़े दिखाकर जुमलेबाजी ही करती रहेगी.