इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक की हालत इतनी खस्ता हुई की वेतन देने के लिए भी नहीं है पैसा, जानिए क्या है मसला?

लॉन्च होने के एक साल बाद ही इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक की हालत खराब होने लगी है। कंपनी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं बच रहे है। ऐसा इसलिए क्योंकि बैंक के पास उस तरह का कारोबार नहीं आ रहा है, जितने की उम्मीद की गई थी। अब डाक विभाग ने आरबीआई से इसको स्मॉल फाइनेंस बैंक में बदलने की अनुमति मांगी है। 

इस वजह से आ रही है दिक्कतें

डाक विभाग का कहना है कि पेमेंट बैंक में एक लाख रुपये से ज्यादा का जमा नहीं हो सकता है। इसके साथ ही बैंक किसी को भी कर्ज नहीं दे सकता है। एक अधिकारी ने कहा कि इससे बैंक को उतनी कमाई नहीं हो रही है। अब बैंक को उम्मीद है कि आरबीआई अगले साल तक स्मॉल फाइनेंस बैंक में बदलने की मंजूरी दे सकता है। 

एक हजार करोड़ रुपये हुए खर्च

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पेमेंट बैंक को शुरू करने के लिए केवल तकनीक पर एक हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस खर्च में बैंक का कोर बैंकिंग सिस्टम और अन्य तकनीकें शामिल हैं। इसके अलावा कर्मचारियों के वेतन और अन्य भत्तों पर 250 करोड़ रुपये का खर्च हुआ। अब इंडिया पोस्ट ने पेमेंट बैंक में नई भर्तियों पर भी रोक लगा दी है। विभाग को उम्मीद है कि सरकार इसमें अलग से पूंजी लगाएगी, ताकि कंपनी के खर्च चलते रहें। 

रघुराम राजन ने की थी शुरुआत

पेमेंट बैंक की शुरुआत रघुराम राजन ने की थी। यह उनका प्रयोग था, जिसमें कुछ ऐसे बैंक बनाए गए थे जो किसी को लोन नहीं देंगे। इसके अलावा खातों में केवल एक लाख रुपये तक ही जमा हो सकेंगे। इन बैंकों के जरिए मकसद था कि दूरदराज के क्षेत्रों में भी लोगों को आसानी से बैंकिंग सेवाएं मिल सकें। शुरुआत में 11 कंपनियों को पेमेंट बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया गया था, जिसमें से पांच ने लाइसेंस को वापस कर दिया था। इंडिया पोस्ट के एक अधिकारी का तर्क है कि छोटे ट्रांजेक्शन होने से इसका किसी तरह का लाभ नहीं मिल रहा है। अभी भी लोग बड़े बिलों का भुगतान नहीं कर सकते हैं। ऐसे में यह मॉडल सही तरीके से काम नहीं कर पा रहा है। स्मॉल फाइनेंस बैंक में बदलने से बैंक किसी भी किसान, छोटे उद्योगों और अन्य असंगठित क्षेत्रों को भी लोन दे सकते हैं। आईपीबीबी 650 शाखाओं के साथ लॉन्च हुआ था। इसके साथ ही डाकघरों में 3250 एक्सेस प्वाइंट में बनाए गए थे। डाकघरों के अलावा डाकियों को भी बैंकिंग सेवाएं देने के लिए प्रशिक्षित किया गया था।