जीएसटी काउंसिल की बैठक हंगामेदार होने के आसार

राज्यों को जीएसटी कंपनसेशन देने की संवैधानिक जिम्मेदारी से केंद्र सरकार के मुकरने से बेहद खफा हैं विपक्षी दलों की राज्य सरकारें।
क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर केंद्र के रुख से खफा हैं विपक्षी राज्य।

नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल की बैठक आज की बैठक काफी हंगामेदार होने के आसार हैं। केंद्र ने राज्य सरकारों को जीएसटी कंपनसेशन यानी क्षतिपूर्ति का भुगतान करने से इनकार करके जिस तरह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा है, उससे विपक्षी दलों की राज्य सरकारें भड़की हुई हैं। जबकि बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने केंद्र के कहने पर जीएसटी कंपनसेशन को भूलकर, अपने-अपने राज्यों पर कर्ज का बोझ लादना मंजूर कर लिया है। यह मुद्दा जीएसटी काउंसिल की बैठक में जोर-शोर से उठाए जाने की पूरी संभावना है।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल, दिल्ली, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी जैसे राज्यों की सरकारों की कहना है कि जीएसटी कंपनसेशन का पैसा उन्हें देना केंद्र सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। लिहाजा, अगर इसके लिए कर्ज लेने की ज़रूरत भी पड़ती है, तो ये कर्ज केंद्र सरकार को ही लेना चाहिए। इस मसले पर आपसी सहमति से कोई समाधान नहीं निकलने की हालत में विवाद निस्तारण मैकेनिज़्म का सहारा लेने की नौबत भी आ सकती है।

बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें चाहती हैं कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द एक स्पेशल विंडो बनाए जिसके जरिए वे जीएसटी कंपनसेशन न मिलने से होने वाली कमी को कर्ज लेकर पूरा कर सकें। केंद्र सरकार ने राज्यों के सामने कर्ज लेने के लिए दो विकल्प रखे हैं। एक विकल्प यह है कि राज्य जीएसटी क्षतिपूर्ति के 97,000 करोड़ रुपये रिजर्व बैंक की स्पेशल विंडो फैसेलिटी के जरिए उधार लें। दूसरा विकल्प यह है कि राज्य 2.35 लाख करोड़ रुपये की पूरी रकम बाजार से जुटाएं। पहले विकल्प में मूलधन और ब्याज की रकम सेस फंड से चुकाई जाएगी, जबकि दूसरे विकल्प में ब्याज का बोझ खुद राज्यों को उठाना होगा।

जीएसटी काउंसिल की बैठक में जीएसटी कंपनसेशन सेस की अवधि को दो साल के लिए बढ़ाकर 2024 तक करने के प्रस्ताव पर भी चर्चा की जानी है। लेकिन कंपनसेशन के भुगतान को लेकर पक्ष-विपक्ष के भारी मतभेद को देखते हुए इस दिशा में बात कितनी आगे बढ़ पाएगी, यह देखने वाली बात है।