एक तरफ मोदी सरकार नोटबंदी के एक साल पूरा (8 नवंबर) होने का जश्न मनाने की तैयारी में है, तो वहीं दूसरी तरफ जर्मन अर्थशास्त्री के एक दावे ने सरकार के जश्न में खलल डालने का काम किया है. जर्मनी के जाने माने अर्थशास्त्री आर्इथक नॉर्बटर हेरिंग ने अपने एक ब्लॉग में भारत में हुई नोटबंदी पर बड़ी टिप्पणी लिखी है. उन्होंने लिखा.
भारत में हुई नोटबंदी अमेरिका के इशारे पर हुई थी. यह कैश पर कड़े हमले जैसा फैसला था. भारत से पहले अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
हेरिंग पेशे से आर्थिक पत्रकार और इकोनॉमिक्स के डॉक्टरेट हैं. उन्होंने ये जानकारियां नोटबंदी से जुड़े अपने एक लेख में दी हैं. अपने ब्लॉग पर उन्होंने लिखा कि ”भारतीयों पर यह हमला होने से चार हफ्ते पहले यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी ऑफ इंटरनेशनल डेवलेपमेंट (यूएसएआईडी) ने ‘कैटलिस्टः कैशलेस पेमेंट पार्टनरशिप’ की स्थापना किए जाने का ऐलान किया था.
हेरिंग आगे लिखते हैं, “14 अक्टूबर का प्रेस स्टेटमेंट बताता है कि कैटलिस्ट यूएसएआईडी और वित्त मंत्रालय के बीच होने वाली अगले चरण की साझेदारी जैसा है. फिलहाल यह बयान अब यूएसएआईडी की आधिकारिक वेबसाइट्स के प्रेस दस्तावेजों में नहीं है.
यह और बाकी बयान पहले भले ही उतने खास न लगे हों, लेकिन आठ नवंबर को भारत में की गई नोटबंदी के बाद यह बेहद रोचक लगने लगे थे.
कैश पर इतने कड़े हमले के पीछे कौन सी संस्थाएं हैं? कैश से परे रिपोर्ट से जुड़ी प्रेजेंटेशन में यूएसएआईडी ने ऐलान किया कि तकरीबन 35 भारतीयों, अमेरिकी और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने यूएसएआईडी और वित्त मंत्रालय के साथ इस पहल पर साझेदारी की.
अर्थशास्त्री के अवुसार, कैशलेस कैटलिस्ट की वेबसाइट http://cashlesscatalyst.org/ पर इससे जुड़ी कुछ जानकारी मिलती है. वहां अधिकतर सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और पेमेंट सेवा मुहैया कराने वाले क्षेत्रों के लोग शामिल हैं. वे डिजिटल पेमेंट्स या फिर उससे जुड़े डेटा को तैयार कर रुपए कमाना चाहते हैं.
जिनमें से अधिकतर डच बैंक सरीखी संस्थाओं के अनुभवी लोग हैं. उन्होंने इसे कैश पर इच्छुक आर्थिक संस्थाओं की जंग (war of interested financial institutions on cash) करार दिया.
इसके अलावा बेटर दैन कैश अलाइंस, द गेट्स फाउंडेशन (माइक्रोसॉफ्ट), ओमिद्यार नेटवर्क (ई-बे), द डेल फाउंडेशन मास्टरकार्ड, वीजा और मेटलाइफ फाउंडेशन के लोग भी इस कतार में शामिल हैं.