कोरोना की तरह डेंगू ने भी बदला ट्रेंड, इसलिए नवंबर में भी बढ़ रहे मरीज

भोपाल। इस बार डेंगू ने अपना ट्रेंड बदल दिया है। पिछले सालों के मुकाबले इस साल केस तो कम हैं, लेकिन, यह अगस्त माह से लगातार सामने आ रहे हैं। जबकि, पहले के सालों में नवबंर माह आते-आते डेंगू का प्रकोप कम हो जाता था। इस साल अभी के निजी अस्पतालों के आंकड़े देखें तो यह सरकारी अस्पतालों से सात गुना ज्यादा हैं। सरकारी अस्पतालों में एलाइजा टेस्ट रिपोर्ट वालों को ही डेंगू पॉजिटिव माना जा रहा है। जबकि, निजी अस्पताल अन्य टेस्ट को भी इसमें शामिल कर रहे हैं।

पिछले साल 11 नवंबर तक 645 मामले डेंगू के आए थे। तब रोजाना सिर्फ 4 मरीज ही सामने आ रहे थे। इस साल मरीजों की अब तक की कुल संख्या 474 के करीब है। वहीं रोजाना 8 से 9 केस सामने आ रहे हैं। पिछले साल 60 फीसदी मामले शहर के 10 हॉट स्पॉट से थे। जबकि, इस बार शहर के हर कोने से मरीज सामने आ रहे हैं। कोलार और इंद्रपुरी हॉट स्पॉट बने हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, इस बार ज्यादा मरीज ऐसे आ रहे हैं जो खुद से दवा खाकर बीमार हुए। मरीजों को ठीक होने में ज्यादा समय लगता है।

सरकारी और निजी अस्पताल के आंकड़े अलग

स्वास्थ्य विभाग सरकारी अस्पतालों में भर्ती 11 मरीजों को ही डेंगू पॉजीटिव मान रहा है। जबकि, शहर के सिर्फ 10 निजी अस्पतालों में 71 मरीज भर्ती हैं। एक सप्ताह में चार डेंगू पीड़ित मरीजों की मौत भी हो चुकी है। लेकिन एलाइजा रिपोर्ट न होने से स्वास्थ्य विभाग इन्हें डेंगू मरीज नहीं मान रहा। जेपी में 5 और हमीदिया में 6 मरीज भर्ती हैं। जबकि, शाहपुरा स्थित एक निजी अस्पताल में 26 मरीज हैं। निजी अस्पताल संचालकों का कहना है कि जो मरीज भर्ती हैं, वे कार्ड टेस्ट पॉजिटिव हैं। उनके लक्षण और प्लेटलेट्स के आधार पर इलाज हो रहा है।

पेनकिलर खाने से बढ़ी समस्या

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश मिश्रा ने बताया कि ओपीडी में रोज बुखार के करीब 20-25 मरीज आ रहे हैं। इनमें से कुछ में डेंगू के लक्षण हैं। दस से अधिक ऐसे मरीज आए हैं, जिनकी प्लेटलेट्स काफी कम थी। उन्हें ब्लीडिंग शुरू हो गई थी। मेडिकल हिस्ट्री से पता चला वे पेनकिलर खा रहे थे। सही इलाज के बाद दो दिन में सभी आइसीयू से बाहर आ गए। एक हफ्ते में उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। इसलिए खुद से पेनकिलर, डाइक्लोफिनेक और एस्प्रिन न खाएं।