होटल मालिक मुस्तफा हुसैन (बदला हुआ नाम) और अंडा बिक्रेता रामप्रवेश पटेल (बदला हुआ नाम) जो कम से कम डेढ़ दो दशकों से वृंदावन के इलाके में अपना कारोबार चलाते रहे हैं, इन दिनों बेहद चिंतित हैं. विडंबना यही है कि इस किस्म की चिंताएं उनके जैसे सैकड़ों लोगों को घेरे हैं, जबसे योगी सरकार ने आनन-फानन में अपना फैसला सुनाया है और वृंदावन और पास के बरसाना के क्षेत्रा को ‘पवित्र तीर्थ स्थल’ घोषित किया है. इन शहरों की पवित्रता की दुहाई देते हुए उसने इन क्षेत्रों में अंडा, मीट और शराब पर पाबंदी लगाई है.
अंडा, मांसाहारी भोजन और शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाने के बाद गोया लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिए पर्यटन मंत्री लक्ष्मीनारायण पांडेय ने कहा है कि सरकार इस क्षेत्र में कुछ करोड़ रुपयों का निवेश करने वाली है ताकि उन्हें धार्मिक पर्यटन के लिए अधिक आकर्षक बनाया जाए और इसी बहाने लोगों को रोजगार मिले.
मगर यह सवाल जरूर उठाया जाना चाहिए कि क्या लोकतंत्र में सरकार को यह अधिकार है कि वह जनता के एक हिस्से के आस्था की दुहाई देते हुए लोगों को जीवनयापन के अधिकार से वंचित कर दे?
उमा भारती ने वर्ष 2003 के अंत में जब वे मध्य प्रदेश में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री बनी थीं, तब अमरकंटक तथा अन्य ‘धार्मिक नगरों में’ मांस-मछली आदि ही नहीं बल्कि अंडे के बिक्री और सेवन पर पाबंदी लगा दी थी. उसी वक्त यह प्रश्न उठा था कि किस तरह एक ही तीर से न केवल अहिंदुओं को बल्कि हिंदू धर्म को मानने वालों के बहुविध दायरे पर अल्पमत वर्ण हिंदुओं का एजेंडा लादा जा रहा है.
ऐसे निर्णय एक तरह से भारत के बारे में लोकप्रिय छवि को ही पुष्ट करते हैं कि भारत का बहुलांश शाकाहारी है, जबकि व्यापक सर्वेक्षणों ने इस बात को साबित किया है कि यह एक मिथक है. अपने बहुचर्चित ‘पीपुल आॅफ इंडिया’ प्रोजेक्ट में कुमार सुरेश सिंह ने पहले ही बताया था कि भारत के अधिकतर समुदाय मांसाहारी हैं.
बहरहाल धर्म विशेष के लिए पवित्र होने के नाम पर इलाकों/शहरों को एक तरह से ‘सुरक्षित धार्मिक क्षेत्र’ यानी सेफ रिलीजियस जोन घोषित करने का सिलसिला इधर बीच खूब परवान चढ़ा है. आप कह सकते हैं कि 2014 में जबसे केंद्र में भाजपा पूर्ण बहुमत से आई है तबसे यह सिलसिला अधिक तेज हो चला है.