गुजरात में विधानसभा चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प है, केवल गुजरात की नहीं पूरे देश की नजर इन चुनावों पर टिकी हुई है, गौरतलब है कि क़रीब 2 दशकों से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का राज है, लेकिन इस बार सालों से कायम ये सियासी रुख बदलता नजर आ रहा है, जिसका एक बड़ा कारण 22 सालों से चल रहे ‘मोदी मैजिक’ का फ़ीका पड़ना भी माना जा रहा है.
अब अगर बात करें इस ‘मोदी मैजिक’ की तो बीते दिनों में हुए ऐसे कई वाक्ये हैं जो इसके विफल होने की गवाही देते हैं. एक समय में श्रोताओं की भीड़ से भरी रहने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां अब खाली दिखाई देने लगी हैं, उदाहरण के तौर पर ले तो हाल ही में पीएम मोदी ने सौराष्ट्र के जसदण में चुनावी रैली की थी, इस सभा में ज्यादातर कुर्सियां खाली रह गईं.
इतना ही नहीं भरूच, जूनागण और सूरत आदि में भी उम्मीद के मुताबिक भीड़ जुटती नहीं देखी गई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर जमकर लोगों द्वारा इस पर तंज कसे गए की पीएम मोदी की रैली में खाली पड़ी कुर्सियां लोगों के बदलते मूड का संकेत दे रही हैं. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी के रोड शो को भी लोगों ने सिरे से खारिज कर दिया था, साथ ही खबर आई थी की लोगो से ज्यादा सड़क पर पीएम के सुरक्षाकर्मी तैनात थे.
तो वहीं दूसरी तरफ सूरत में हुए पाटीदार नेता हार्दिक पटेल रोड शो की अगर बात करे तो यहां लगे जमावड़े ने PAAS (पाटीदार अनामत आंदोलन समीति) की ताक़त का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया. किसी भी चुनाव में लोगों के रुझान को जानने के लिए कराये गए सर्वे अहम भूमिका निभाते है, इसी प्रकार- गुजरात चुनावों के तहत हुए CSDS के ओपिनियन पोल (सर्वे) की मानें तो इस सर्वे में कांग्रेस को बहुत तेजी से आगे बढ़ते हुए और गुजरात में सत्तारूढ़ बीजेपी के काफी करीब आते बताया गया.
इसके साथ ही यह भी कहा गया कि बीते अगस्त और अक्टूबर के दो सर्वेक्षणों की तुलना में इस सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच लोकप्रियता का अंतर घटा है. ज्यादातर सर्वे एजेंसियों को लेकर यह माना जाता है की इन सर्वे द्वारा मुख्यत: सत्तारूढ़ पार्टी को लेकर सकारात्मक रुझान दर्शाए जाते है, लेकिन इस बार इनका भी बीजेपी की स्थिति को कमज़ोर बताना, सियासी पलटवार के होने वाले दावों को ही दर्शाता है.
इन गुजरात चुनावों में बीजेपी की पकड़ पर ध्यान दे तो उनके पास लाइफलाइन के तौर पर इस्तेमाल किये गए- राम मंदिर मामले और मणि शंकर अय्यर की टिप्पणी जैसे मामले (जिनका गुजरात से वास्तव में कुछ लेना देना नहीं है) के आलावा कोई ठोस विकल्प अभी तक देखने को नहीं मिला है. हमेशा से तुरुप के इक्के के तौर पर इस्तेमाल किए गए मोदी जी के गरीबी और चाय बेचने के हवाले भी इस बार निश्चय ही कारगर साबित नहीं हुए, जिसका आभास मैंने हाल ही में की गई अपनी गुजरात यात्रा के दौरान किया.
प्रमाण के तौर पर ले तो, हाल ही में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का एक ऑडियो टेप लीक हुआ जिसमें वो बीजेपी की कमजोर स्थिति का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘गुजरात में इस बार बीजेपी की हालत बहुत ही पतली है’, जो सभी बातों की पुष्टि कर देता है और जिसके बाद यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की सालों से गुजरात वासियों के ऊपर विभिन्न रंगों में विद्यमान रहा “मोदी मैजिक” इस बार बेरंग होता नजर आ रहा है.