आज जवाहरलाल नेहरू की जयंती है. आजकल ये फैशन चल पड़ा है कि मौका मिलते ही जवाहर लाल नेहरू की बुराई की जाए. इस काम में बीजेपी समेत संघ परिवार विशेष तौर पर सबसे आगे रहता है. बल्कि, आजकल जवाहर लाल के खिलाफ तरह-तरह के बेहद घटिया वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं. उनका उद्देश्य जवाहर लाल समेत पूरे गांधी-नेहरू परिवार की साख को बिगाड़ना है. लेकिन सवाल यह है कि जवाहर लाल नेहरू के अलावा जो कांग्रेस के अन्य प्रधानमंत्री रहे हैं संघ उनका विरोध करने के बजाय उनकी तारीफ क्यों करता है. उदाहरण के तौर पर लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव की प्रशंसा होती है, लेकिन नेहरू को बुरा भला कहा जाता है. सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है.राममनोहर लोहिया की जन्मशती पर छपे एक स्मृति विशेषांक में एक दिलचस्प क़िस्सा है. लोहिया एक बार काफी बीमार थे और यह चर्चा चल रही थी कि उन्हें देखभाल और इलाज के लिए कहां जाना चाहिए. किसी ने कहा कि वे कोलकाता चले जाएं, किसी ने कहा कि वे हैदराबाद बद्रीविशाल पित्ती के यहाँ चले जाएं. लेकिन लोहिया ने कहा – जानते हो मेरी सबसे अच्छी देखभाल कहां हो सकती है. उन्होंने कहा कि आज भी मेरी देखभाल इलाहाबाद में आनंदभवन में जैसी होगी, वैसी कहीं नहीं होगी. यह लोहिया के कटु नेहरू विरोधी हो जाने के बहुत बाद की बात है.
एक क़िस्सा राज थापर की किताब “ऑल दोज डेज़” में आता है. रोमेश थापर मुंबई में डॉक्युमेंटरी फ़िल्मों में वाइस ओवर कर के जीवनयापन कर रहे थे. तत्कालीन बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने कम्यूनिस्ट होने के इल्ज़ाम में उन्हें काम दिए जाने पर पाबंदी लगवा दी. लोगों ने थापर को सलाह दी कि वे नेहरू से शिकायत करें. तब कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस विरोधी और नेहरु विरोधी थी, इसलिए थापर ने यह सलाह नहीं मानी. इस पर मित्रों ने कहा कि तुम नेहरू नाम के व्यक्ति या कांग्रेस के नेता से नहीं, भारत के प्रधानमंत्री से शिकायत करोगे कि उनकी सरकार तुम्हारे साथ अन्याय कर रही है. थापर ने एक चिट्ठी लिखी और उसे प्रधानमंत्री निवास के बाहर डाक के डिब्बे में डाल दिया.
अगले ही दिन रोमेश थापर को प्रधानमंत्री के सचिव मथाई का फ़ोन आया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने आप की चिट्ठी पढ़ी. कल इस सिलसिले में आपको सूचना प्रसारण मंत्री डॉ केसकर का फ़ोन आएगा. अगर डॉ केसकर का फ़ोन न आए तो आप फिर हमसे संपर्क करें. अगले दिन थापर को डॉ केसकर का फ़ोन आया, उन्होंने थापर को मिलने बुलाया. थापर उनसे मिले और उन्हें फिर अपना काम मिल गया.
एक प्रसंग पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का बताया हुआ है. चंद्रशेखर पहली बार जब संसद पहुँचे तो एक दिन उन्होंने संसद में नेहरू की सख़्त आलोचना की. शाम को नेहरू ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के नेता नाथ पै से पूछा – यह नौजवान इतना नाराज़ क्यों है? नाथ पै ने चंद्रशेखर से बात की और जवाब नेहरू को सुनाया. नेहरू ने अगले दिन सुबह संसद में चंद्रशेखर के उठाए मुद्दों पर विस्तृत वक्तव्य दिया.
एक प्रसंग दिल्ली के मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना का बताया हुआ है. खुराना जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे, तब विश्वविद्यालय के छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ नेहरू से मिलने आए. मिलकर जब प्रतिनिधिमंडल जाने लगा तो नेहरू छात्रों को छोड़ने दरवाज़े तक आए. छात्रों ने संकोच में कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नही हैं, तब नेहरू ने कहा कि नौजवान, यह इसलिए ज़रूरी है ताकि याद रहे कि यह हमारे मुल्क की तहज़ीब है.
ये घटनाएँ जिस संस्कृति और सभ्यतामूलक मर्यादाओं के पालन को दिखाती हैं, उससे संस्कृति के कथित पैरोकारों को बार-बार असहज होना पड़ता है, उन्हें इससे बार-बार आईना दिखाई देता है. नेहरू का यह आचरण लोकतंत्र के सर्वोच्च मूल्यों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की गहराई को भी व्यक्त करता है, क्योंकि भारतीय समाज में जो सहज उदारता और शालीनता सदियों से रही है, उसके प्रतिनिधि भी नेहरू नजर आते हैं. इससे हिंदुत्ववादियों को अपने आचरण का परायापन और नक़लीपन उभर कर आता दिखता है. अगर नेहरू अलोकतांत्रिक, आक्रामक और असंस्कृत होते तो, उनके विरोधियों को आज तक उनके विरोध में मोर्चा खोलने की ज़रूरत नहीं होती. लेकिन, अपने लोकतांत्रिक और सुसंस्कृत आचरण से नेहरू आज भी संकीर्ण और अनुदारिता के आक्रमण के ख़िलाफ़ एक मज़बूत दीवार बने हुए हैं.